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Shiv chalisa lyrics in hindi PDF download:
Shiv Chalisa Lyrics को Hindi text फॉर्मेट में लिखा गया है | यदि आप इसे डाउनलोड नहीं करना चाहते हैं तो आप इसे नीचे स्क्रोल करके पढ़ भी सकते हैं |
शिव चालीसा का पाठ प्रतिदिन करने से मन शांत रहता है तथा जीवन की समस्याओं को भगवान Shri Shiv जी शीघ्र ही दुर करते हैं |
शिव जी को ऐसे ही नहीं, भोले बाबा कहा जाता है, जो कोई भी इनकी सच्चे मन से अराधना करता है उसको भगवान शिव का आशीर्वाद शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है चाहे भक्त दुष्ट ही क्यों ना हो | जैसे रावण दुष्ट था पर भगवान श्री शिव का बहुत बडा भक्त भी था और रावण को शिव जी का आशीर्वाद प्राप्त था |
Shiv Chalisa Lyrics In Hindi Text:
भगवान शिव की स्तुतियों में शिव चालीसा को श्रेष्ट एवं कल्याणकारी मानी जाती है | श्री शिव जी एक ऐसे भगवान हैं जो मानव एवं दानव दोनों के देव कहे जाते हैं |
Shiv Chalisa Lyrics in Hindi Text शुद्ध लिखने का प्रयास किया गया है जिससे उच्चारण करने में त्रुटि ना हो | इसके लिए आप उपर दिए गये लिंक से shiv chalisa lyrics in hindi pdf को download भी कर सकते हैं | श्री शिव चालीसा का पाठ करने से अनेक लाभ होते है |
शिव चालीसा का पाठ करने एवं सुनाने मात्र से व्यक्ति का जीवन खुशहाल एवं घर में सुख, शांति, धन और वैभव में वृद्धि के साथ-साथ रोग एवं महामारी से बचने में भी सहायक होती है |
Shri Shiv Chalisa Lyrics:
|| दोहा ||
जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान |
कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान ||
|| चौपाई ||
जय गिरिजा पति दीन दयाला | सदा करत संतन प्रतिपाला ||1||
भाल चन्द्रमा सोहत नीके | कानन कुंडल नागफनी के ||2||
अंग और शिर गंग बहाए | मुंडमाल तन क्षार लगाए ||3||
वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे | छवि को देखि नाग मन मोहे ||4||
मैना मातु की हवे दुलारी | बाम अंग सोहत छवि न्यारी ||5||
कर त्रिशूल सोहत छवि भारी | करत सदा शत्रुं क्षयकारी ||6||
नंदी गणेश सोहे तहां कैसे | सागर मध्य कमल हैं जैसे ||7||
कार्तिक श्याम और गणराऊ | या छवि को कही जात न काऊ ||8||
देवन जबहीं जाय पुकारा | तब ही दुख प्रभु आप निवारा ||9||
किया उपद्रव तारक भारी | देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी ||10||
तुरत षडानन आप पठायऊ | लव निमेष महं मारि गिरायऊ ||11||
आप जलंधर असुर संहारा | सुयश तुम्हार विदित संसारा ||12||
त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई | सबहीं कृपा कर लीन बचाई ||13||
किया तपहिं भागीरथी भारी | पुरब प्रतिज्ञा तसु पुरारी ||14||
दानिन महम् तुम सं कोऊ नाहीं | सेवक स्तुति करत सदाहीं ||15||
वेद नाम महिमा तव गाई | अकथ अनादि भेद नहिं पायी ||16||
प्रगट उदधि मंथन में ज्वाला | जरे सुरासुर भये विहाला ||17||
कीन्ह दया तहं करी सहायी | नीलकंठ तब नाम कहायी ||18||
पूजन रामचंद्र जब कीन्हा | जीत के लंक विभीषण दीन्हा ||19||
सहस कमल में हो रहे धारी | कीन्ह परीक्षा तबहीं पुरारी ||20||
एक कमल प्रभु राखेउ जोई | कमल नयन पूजन चहं सोई ||21||
कठिन भक्ति देखि प्रभु शंकर | भये प्रसन्न दिए इच्छित वर ||22||
जय जय जय अनंत अविनाशी | करत कृपा सब के घटवासी ||23||
दुष्ट सकल नित मोहि सतावै | भ्रमत रहों मोहि चैन न आवै ||24||
त्राहि त्राहि मैं नाथ पुकारो | येही अवसर मोहि आन उबारो ||25||
लै त्रिशूल शत्रुन को मारो | संकट ते मोहि आन उबारो ||26||
मात-पिता भ्राता सब होई | संकट में पूछत नहिं कोई ||27||
स्वामी एक है आस तुम्हारी | आय हरहु मम संकट भारी ||28||
धन निर्धन को देत सदा हीं | जो कोई जाचें सो फल पाहीं ||29||
अस्तुति कही विधि करें तुम्हारी | क्षमहु नाथ अब चूक हमारी ||30||
शंकर हो संकट के नाशन | मंगल कारण विध्न ध्यान लगावै ||31||
योगी यति मुनि ध्यान लगावै | शारद नारद शीश नवावैं ||32||
नमो नमो जय नमः शिवाय | सुर ब्रह्मादिक पार न पाय ||33||
जो यह पाठ करे मन लाई | ता पर होत है शम्भु सहाई ||34||
ऋनिया जो कोई हो अधिकारी | पाठ करे सो पावन हारी ||35||
पुत्र होन कर इच्छा जोई | निश्चय शिव प्रसाद तेहि होई ||36||
पंडित त्रयोदशी को लावे | ध्यान पुर्वक होम करावै ||37||
त्रयोदशी व्रत करे हमेशा | ताके तन नहीं रहै कलेशा ||38||
धूप दीप नैवेद्य चढावे | शंकर सम्मुख पाठ सुनावे ||39||
जन्म जन्म के पाप नसावे | अन्त धाम शिवपुर में पावे ||40||
कहैं अयोध्यादास आस तुम्हारी | जानि सकल दुख हरहु हमारी ||
|| दोहा ||
नित्त नेम कर प्रातः ही, पाठ करों चालीसा |
तुम मेरी मनोकामना, पूर्ण करो जगदीश ||
मगसर छठी हेमंत ऋतू, संवत चौसठ ज्ञान ||
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीं कल्याण ||