Hanuman Bahuk Ka Path के बारे में ऐसा माना जाता है कि कलयुग के अत्यधिक प्रकोप से श्री तुलसीदास जी के भुजाओं में असहनीय पीड़ा हो रहा था तो तुलसीदास जी ने हनुमान की स्तुति में अपने दर्द को शब्दों में वर्णन करते हुए हनुमान बाहुक की रचना की | इसे तुलसीदासकृत हनुमान बाहुक स्तोत्र (Hanuman Bahuk Stotra) अथवा हनुमान बाहुक पाठ (Hanuman Bahuk Ka Path) कहा जाता है ।
हनुमान बाहुक का पाठ जाप करने से शारीरिक पीड़ा से छुटकारा एवं इच्छाओं की पूर्ति यथाशीघ्र होती है । पाठकों को हनुमान बाहुक का जप करने में कोई कठिनाई न हो इसके लिए निचे Hanuman bahuk pdf file download करने के लिए नीचे लिंक दिया गया है, लिंक पर क्लिक करके आसानी से हनुमान बाहुक पाठ हिंदी pdf download कर सकते हैं |
यदि आप जानना चाहते हैं कि हनुमान बाहुक का पाठ कैसे करें ? और हनुमान बाहुक का पाठ करने से क्या-२ फायदे होते हैं ? तो इस पोस्ट के अन्त में पाठ करने के प्रभावी तरीका एवं फायदे बताये गये हैं | पढ़े एवं इसका लाभ उठायें |
जिस प्रकार हनुमान अष्टक (Hanuman Ashtak) तथा तुलसीदास कृत हनुमान चालीसा में हनुमान जी द्वारा किये गये बहुत ही मुश्किल एवं महत्वपूर्ण कार्यों का वर्णन किया गया है ठीक उसी प्रकार Hanuman Bahuk में भी श्री हनुमान जी के द्वारा किये गये कठिन कार्यों का वर्णन किया गया है |
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Hanuman Bahuk Ka Path In Hindi Lyrics:(हनुमान बाहुक का पाठ)
Hanuman Bahuk lyrics का पाठ शारीरिक पीड़ा को दूर करने के लिए किया जाता है जो कि बहुत ही कारगर साबित होता है खास कर जोड़ो के दर्द में |
छप्पय
सिंधु तरन, सिय सोच हरन, रबि बाल बरन तनु |
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहु को काल जनु ||
गदन दहन निर्दाहन लंक निःसंक, बंक भुव |
जातुधान बलवान मान-मद-दवन पवनसुव ||
कह तुलसीदास सेवत सुलभ सेवक हित संतत निकट |
गुन गनत, नमत, सुमिरन जपत समन सकल संकट विकट |१|
स्वर्न-सैल-संकास कोटि-रवि तरुन तेज घन |
उर विसाल भुज दंड चंड नख वज्रतन ||
पिंग नयन, भृकुटी कराल रसना दसनानन |
कपीस केस कर्कस लंगूर, खाल-दल बल भानन ||
कह तुलसीदास बस जासु उर मरुतसुत मूरति विकट |
संताप पाप तेहि पुरुष पाहि सपनेहुँ नहीं आवत निकट |२|
पंचमुख-छःमुख भृगु मुख्या भट असुर-सुर, सर्व साडी समर समरत्थ सुरो |
बांकुरो बीर बिरुदैत विरुदावली, वेद बंदी बदत पैजपुरो ||
जासु गुनगात रघुनाथ कह जासुबल, बिपुल जल भरित जग जलधि झूरो |
दुवन दल दमन को कौन तुलसीस है, पवन को पूत राजपूत रुरो |३|
भानुसों पढन हनुमान गये भानुमन, अनुमानी सिसु केलि कियो फेर फारसो |
पछिले पगनी गम गगन-मगन मन, क्रम को न भ्रम कापी बालक बिहार सो ||
कौतुक बिलोकी लोकपाल हरिहर विधि, लोचननी चकाचौधी चित्तनी खबार सो |
बल कैधों वीररस धीरज के, साहस के, तुलसी सरीर धरे सबनि सार सो |४|
भारत में पारथ के रथ केथू कपिराज, गाज्यो सुनी कुरूराज दल हल बल भो |
कहयो ड्रोन भीष्म सरीर सुत महावीर, बीररस बारी निधि जाको बल जल भो ||
बानर सुभाय बाल केलि भूमि भानु लागि, फलंग-फलांग हूतें घाटी नभ ताल भो |
नाइ-नाइ माथ जोरि-२ हाथ जोधा जो है, हनुमान देखें जगजीवन को फल भो |५|
गो-पद पयोधि करी होलिका ज्यों लाई लंक, निपट निःसंक् पर पुर गल बल भो |
द्रोन सो पहार लियो ख्याल ही उखरि कर, कंदुक ज्यों कपि खेल बेल कैसो फल भो ||
संकट समाज असमंजस भो राम राज, काज जुग पूगनी को करतल पल भो |
साहसी समत्थ तुलसी को नाई जा कि बांह, लोकपाल पालन को फिर थीर थल भो |६|
कमठ कि पीठी जाके गोदान कि गाडे मानो, नाप के भाजन भरि जल निधि जल भो |
जातुधान दावन परावन को दुर्ग भयो, महामीन बॉस तिमि तोमनि को थल भो ||
कुम्भकरण रावन पयोद नाद ईधन को, तुलसी प्रताप जाको प्रबल अनल भो |
भीष्म कहत मेरे अनुमान हनुमान, सरीखो त्रिकाल न त्रिलोक महाबल भो |७|
दूत रामराय को सपूत पूत पौनको, तू अंजनी को नन्दन प्रताप भूरि भानु सो ।
सीय सोच समन दुरित दोष दमन, सरन आये अवन लखन प्रिय प्रान सो ||
दस-मुख दुसह दरिद्र दरिबे को भयो, प्रकट तिलोक ओक तुलसी निधान सो |
ज्ञान, गुनवान, बलवान, सेवा सावधान, साहेब सुजान उर आनु हनुमान सो |८|
दवन-दुवन दल भुवन बिदित बल, बेद जस गावत बिबुध बंदीछोर को |
पाप ताप तिमिर तुहिन विघटन पटु, सेवक सरोरूह सुखद भानु भोर को |
लोक परलोक, तें बिसोक सपने न सोक, तुलसी के हिये है भरोसो एक ओर को ।
राम को दुलारो दास, बामदेव को निवास, नाम कलि कामतरु केसरी किसोर को |९|
महाबल सीम, महाभीम महाबान इत, महाबीर बिदित बरायो रघुबीर को |
कुलिस कठोर तनु जोरपरै रोर रन, करुना कलित मन धारमिक धीर को |
दुर्जन को काल-सो, कराल पाल सज्जन को, सुमिरे हरनहार तुलसी की पीर को |
सीय सुख दायक दुलारो रघुनायक को, सेवक सहायक है साहसी समीर को |१०|
रचिबे को बिधि जैसे पालिबे को, हरि हर मीच मारिबे को, ज्याईबे को सुधापान भो |
धरिबे को, धरनि तरनि तम दलिबे को, सोखिबे कृसानु पोषिबे को, हिम-भानु भो |
खल दुःख दोषिबे को, जन परितोषिबे को, माँगिबो मलीनता को, मोदक सुदान भो |
आरत की आरति निवारिबे को, तिहुँ पुर तुलसी को, साहेब हठीलो हनुमान भो |११|
सेवक स्योकाइ जानि जानकीस मानै कानि, सानुकूल सूलपानि नवै नाथ नाँक को |
देवी देव दानव दयावने हवे जोरैं हाथ, बापुरे बराक कहा और राजा राँक को |
जागत, सोवत, बैठे, बागत, बिनोद मोद, ताके जो अनर्थ सो समर्थ एक आँक को |
सब दिन रुरो, परै पूरो, जहाँ-तहाँ ताहि, जाके है भरोसो, हिऐ हनुमान हाँक को |१२|
सानुग सगौरि सानुकूल सूलपानि ताहि, लोकपाल सकल लखन राम जानकी |
लोक, परलोक को बिसोक सो तिलोक ताहि, तुलसी तमाइ कहा काहू बीर आनकी |
केसरी किसोर बन्दीछोर के नेवाजे सब, कीरति बिमल कपि करुनानिधान की |
बालक ज्यों पालिहैं, कृपालु मुनि सिद्ध ताको, जाके हिऐ हुलसति हाँक हनुमान की |१३|
करुना-निधान, बलबुद्धि के निधान, मोद महिमा निधान, गुन-ज्ञान के निधान हौ |
बामदेव रुप भूप राम के सनेही, नाम लेत-देत अर्थ, धर्म, काम निरबान हौ |
आपने प्रभाव सीताराम के सुभाव सील, लोक बेद बिधि के बिदूष हनुमान हौ |
मन की बचन की, करम की तिहूँ प्रकार, तुलसी तिहारो, तुम साहेब सुजान हौ |१४|
मन को अगम तन सुगम किये कपीस, काज महाराज के समाज साज साजे है |
देव-बंदी छोर रनरोर केसरी किसोर, जुग-२ जग तेरे बिरद बिराजे हैं |
बीर बरजोर घटि जोर, तुलसी की ओर, सुनि सकुचाने, साधु खल गन गाजे है |
बिगरी सँवार अंजनी कुमार कीजे मोहिं, जैसे होत आये हनुमान के निवाजे है |१५|
सवैया
जान सिरोमनि हौ हनुमान, सदा जन के मन बास तिहारो |
ढ़ारो बिगारो मैं काको कहा, केहि कारन खीझत हौं तो तिहारो |
साहेब सेवक नाते तो हातो, कियो सो तहाँ तुलसी को न चारो |
दोष सुनाये तें आगेहुँ को होशियार, ह्वैं हों मन तौ हिय हारो |१६|
तेरे थपे उथपै न महेस, थपै थिरको कपि जे घर घाले |
तेरे निवाजे गरीब निवाज, बिराजत बैरिन के उर साले |
संकट सोच सबै तुलसी लिऐ, नाम फटै मकरी के से जाले |
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार, कि हारि परे बहुतै नत पाले |१७|
सिंधु तरे, बड़े बीर दले खल, जारे हैं लंक से बंक मवा से |
तैं रनि-केहरि-केहरि के बिदले, अरि-कुंजर छैल छवा से |
तोसों समत्थ सुसाहेब सेई, सहै तुलसी दुख दोष दवा से |
बानर-बाज बढ़े खल-खेचर, लीजत क्यों न लपेटि लवा से |१८|
अच्छ विमर्दन कानन भानि, दसानन आनन भा न निहारो |
बारिदनाद अकंपन कुंभकरन से कुंजर केहरि बारो |
राम प्रताप हुतासन, कच्छ, बिपच्छ, समीर समीर दुलारो |
पाप तें, साप तें, ताप तिहूँ तें, सदा तुलसी कहँ सो रखवारो |१९|
घनाक्षरी
जानत जहान हनुमान को निवाज्यौ, जन मन अनुमानि बलि बोल न बिसारिऐ |
सेवा जोग तुलसी कबहुँ कहा चूक परी, साहेब सुभाव कपि साहिबी सँभारिऐ |
अपराधि जानि कीजै सासति सहस भाँति, मोदक मरै जो ताहि माहुर न मारिऐ |
साहसी समीर के दुलारे रघुबीर जू के, बाँह पीर महाबीर बेगि ही निवारिऐ |२०|
बालक बिलोकि बलि बारेतें आपनो कियो, दीनबन्धु दया कीन्हीं निरुपाधि न्यारिऐ |
रावरो भरोसो तुलसी के रावरोई बल, आस रावरीयै दास रावरो बिचारिऐ |
बड़ो बिकराल कलि काको न बिहाल कियो, माथे पगु बलि को, निहारि सो निवारिऐ |
केसरी किसोर रनरोर बरजोर बीर, बाँहुपीर राहुमातु ज्यौं पछारि मारिऐ |२१|
उथपे थपनथिर थपे उथपनहार, केसरी कुमार बल आपनो सँभारिऐ |
राम के गुलामनि को कामतरु रामदूत, मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिऐ |
साहेब समर्थ तोसों तुलसी के माथे पर, सोऊ अपराध बिनु बीर, बाँधि मारिऐ |
पोखरी बिसाल बाँहु बलि बारिचर पीर, मकरी ज्यौं पकरि कै बदन बिदारिऐ |२२|
राम को सनेह राम साहस लखन सिय, राम की भगति, सोच संकट निवारिऐ |
मुद मरकट रोग-बारि-निधि हेरि हारे, जीव जामवंत को भरोसो तेरो भारिऐ |
कूदिये कृपाल तुलसी सुप्रेम पब्बयतें, सुथल सुबेल भालू बैठि कै बिचारिऐ |
महाबीर बाँकुरे बराकी बाँह पीर क्यों न, लंकिनी ज्यों लात-घात ही मरोरि मारिऐ |२३|
लोक परलोकहुँ तिलोक न बिलोकियत, तोसे समरथ चष चारिहूँ निहारिए |
कर्म काल लोकपाल अग-जग जीवजाल, नाथ हाथ सब निज महिमा बिचारिए |
खास दास रावरो निवास तेरो तासु उर, तुलसी सो देव दुखी देखियत भारिए |
बात तरुमूल बाँहुसूल कपि कच्छु बेलि, उपजी सकेलि कपिकेलि ही उखारिए |२४|
करम कराल कंस भूमिपाल के भरोसे, बकी बक भगिनी काहू तें कहा डरैगी |
बड़ी बिकराल बाल, घातिनी न जात कहि, बाँहूबल बालक छबीले छोटे छरैगी |
आई है बनाइ बेस आप ही बिचारि देख, पाप जाए सबको गुनी के पाले परैगी |
पूतना पिसाचिनी ज्यौं, कपिकान्ह तुलसी की, बाँहपीर महाबीर तेरे मारे मरैगी |२५|
भालकी की कालकी कि रोष की त्रिदोष की है, बेदन बिसम पाप ताप छल छाँह की |
करमन कूट की कि जन्त्र मन्त्र बूट की, पराहि जाहि पापिनी मलीन मन माँह की |
पैहहि सजाए, नत कहत बजाए तोहि, बाबरी न होहि बानि जानि कपि नाँह की |
आन हनुमान की दुहाई बलवान की, सपथ महाबीर की जो रहै पीर बाँह की |२६|
सिंहिका सँहारि बल सुरसा सुधारि छल, लंकिनी पछारि मारि बाटिका उजारी है |
लंक परजारि मकरी बिदारि बार-२, जातुधान धारि धूरिधानी करि डारी है |
तोरि जमकातरि, मंदोदरी कढ़ोरि आनी, रावन की रानी मेघनाद महँतारी है |
भीर बाँह पीर की, निपट राखी महाबीर, कौन के सकोच तुलसी के सोच भारी है |२७|
तेरो बालि केलि बीर सुनि सहमत धीर, भूलत सरीर सुधि सक्र रबि, राहु की |
तेरी बाँह बसत बिसोक लोकपाल सब, तेरो नाम लेत रहै, आरति न काहु की |
साम दान भेद बिधि, बेदहू लबेद सिधि, हाथ कपिनाथ ही के चोटी, चोर साहु की |
आलस अनख, परिहास कै सिखावन है, एते दिन रही पीर तुलसी के बाहु की |२८|
टूकनि को घर-२ डोलत कँगाल बोलि, बाल ज्यों कृपाल नतपाल पालि पोसो है |
कीन्ही है सँभार-सार अँजनी कुमार बीर, आपनो बिसारि हैं, न मेरेहू भरोसो है |
इतनो परेखो, सब भाँति समरथ आजु, कपिराज साँची कहौं को तिलोक तोसो है |
सासति सहत दास कीजे, पेखि परिहास, चीरी को मरन खेल बालकनि को सो है |२९|
आपने ही पाप तें त्रिपात तें कि साप तें, बढ़ी है बाँह बेदन कही न सहि जाति है |
औषध अनेक जन्त्र मन्त्र टोटकादि किये, बादि भये देवता मनाये अधिकाति है |
करतार-भरतार-हरतार, कर्मकाल, को है जगजाल जो न मानत इताति है |
चेरो तेरो तुलसी तू मेरो, कह्यो राम दूत, ढील तेरी बीर मोहि पीर तें पिराति है |३०|
दूत राम राय को, सपूत पूत बाय को, समत्व हाथ पाय को|
सहाय असहाय को बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत, रावन सो भट भयो मुठिका के घाय को |
एते बड़े साहेब समर्थ को निवाजो आज, सीदत सुसेवक बचन मन काय को |
थोरी बाँह, पीर की बड़ी गलानि तुलसी को, कौन पाप कोप, लोप प्रकट प्रभाय को |३१|
देवी देव दनुज-मनुज मुनि सिद्ध नाग, छोटे बड़े जीव जेते चेतन अचेत हैं |
पूतना-पिसाची, जातुधानी-जातुधान बाम, राम दूत की रजाई माथे मानि लेत हैं |
घोर जन्त्र-मन्त्र कूट-कपट कुरोग जोग, हनुमान आन सुनि छाड़त निकेत हैं |
क्रोध कीजे कर्म को प्रबोध कीजे तुलसी को, सोध कीजे तिनको जो दोष दुख देत हैं |३२|
तेरे बल बानर जिताये, रन रावन सों, तेरे घाले जातुधान भये घर-२ के |
तेरे बल रामराज किये, सब सुरकाज, सकल समाज-साज साजे रघुबर के |
तेरो गुनगान सुनि, गीरबान पुलकत, सजल बिलोचन बिरंचि हरि हर के |
तुलसी के माथे पर, हाथ फेरो कीसनाथ, देखिये न दास दुखी तोसो कनिगर के |३३|
पालो तेरे टूक को परेहू चूक मूकिए न, कूर कौड़ी दूको हौं आपनी ओर हेरिए |
भोरानाथ भोरे ही सरोष होत थोरे दोष, पोषि तोषि थापि आपनी न अवडेरिए |
अँबु तू हौं अँबुचर अँबु तू हौं डिंभ सो न, बूझिये बिलंब-अवलंब मेरे तेरिए |
बालक बिकल जानि पाहि प्रेम पहिचानि, तुलसी की बाँह पर लामी लूम फेरिए |३४|
घेरि लियो रोगनि कुजोगनि, कुलोगनि ज्यौं, बासर जलद घन घटा धुकि धायी है |
बरसत बारि पीर जारिये जवासे जस, रोष बिनु दोष धूम मूल मलिनायी है |
करुना निधान, हनुमान महाबलवान, हेरि हँसि हाँकि फूँकि फौजैं ते उड़ायी है |
खाये हुतो तुलसी, कुरोग राढ़ राकसनि, केसरी किसोर राखे बीर बरिआयी है |३५|
सवैया
राम गुलाम तु ही हनुमान, गोसांई सुसांई सदा अनुकूलो |
पाल्यो हौं बाल ज्यों आखर दू, पितु मातु सों मंगल मोद समूलो |
बाँह की बेदन बाँह पगार, पुकारत आरत आनँद भूलो |
श्री रघुबीर निवारिये पीर रहौं दरबार परो लटि लूलो |३६|
घनाक्षरी
काल की करालता, करम कठिनाई कीधौं, पाप के प्रभाव की सुभाय बाय बावरे |
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति-दिन, सोई बाँह गही जो गही समीर डाबरे |
लायो तरु तुलसी, तिहारो सो निहारि बारि, सींचिये मलीन भो तयो है तिहुँ तावरे |
भूतनि की आपनी पराये की कृपा निधान, जानियत सबही की रीति राम रावरे |३७|
पाँय पीर, पेट पीर, बाँह पीर, मुँह पीर, जरजर सकल पीर मई है |
देव भूत पितर करम खल काल ग्रह, मोहि पर दवरि दमानक सी दई है |
हौं तो बिनु मोल के बिकानो बलि बारेही तें, ओट राम नाम की ललाट लिखि लई है |
कुंभज के किंकर बिकल बूढ़े गोखुरनि, हाय राम राय ऐसी हाल कहूँ भई है |३८|
बाहुक सुबाहु नीच लीचर मरीच मिलि, मुँहपीर केतुजा कुरोग जातुधान हैं |
राम नाम जगजाप कियो, चहों सानुराग, काल कैसे दूत भूत कहा मेरे मान हैं |
सुमिरे सहाय रामलखन आखर दोऊ, जिनके समूह साके जागत जहान हैं |
तुलसी संभारि ताड़का सँहारि भारि भट, बेधे बरगद से बनाई बानवान हैं |३९|
बालपने सूधे मन राम सनमुख भयो, राम नाम लेत माँगि खात टूकटाक हौं |
परयो लोक-रीति में पुनीत प्रीति राम राय, मोह बस बैठो तोरि तरकि तराक हौं |
खोटे-खोटे आचरन आचरत अपनायो, अंजनी कुमार सोध्यो रामपानि पाक हौं |
तुलसी गुसाँई भयो भोंडे दिन भूल गयो, ताको फल पावत निदान परिपाक हौं |४०|
असन बसन हीन, बिषम बिषाद लीन, देखि दीन दूबरो करै न हाय-२ को |
तुलसी अनाथ-सो-सनाथ रघुनाथ कियो, दियो फल सील सिंधु आपने सुभाय को |
नीच यहि बीच पति पाइ भरु हाईगो, बिहाइ प्रभु भजन बचन मन काय को |
ता तें तनु पेषियत घोर बरतोर मिस, फूटि-२ निकसत लोन राम राय को |४१|
जीओं जग जानकी जीवन को कहाइ जन, मरिबे को बारानसी बारि सुरसरि को |
तुलसी के दुहूँ हाथ मोदक हैं ऐसे ठाँउ, जाके जिये मुये सोच करिहैं न लरि को |
मोको झूटो साँचो लोग राम को कहत सब, मेरे मन मान है न हर को न हरि को |
भारी पीर दुसह सरीर तें बिहाल होत, सोऊ रघुबीर बिनु सकै दूर करि को |४२|
सीता-पति साहेब सहाय हनुमान नित, हित उपदेश को महेस मानो गुरु कै |
मानस बचन काय सरन तिहारे पाँय, तुम्हरे भरोसे सुर मैं न जाने सुर कै |
ब्याधि भूत जनित उपाधि काहु खल की, समाधि कीजे तुलसी को जानि जन फुर कै |
कपिनाथ, रघुनाथ, भोलानाथ, भूतनाथ, रोग सिंधु क्यों न डारियत गाय खुर कै |४३|
कहों हनुमान सों सुजान राम राय सों, कृपानिधान संकर सों सावधान सुनिए |
हरष-विषाद, राग-रोष, गुन-दोष, मई, बिरची-बिरञ्ची सब देखियत दुनिए |
माया जीवकाल के, करम के, सुभाय के, करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिए |
तुम्ह तें कहा न होय हा-२ सो बुझैये मोहि, हौं हूँ रहों मौनही बयो सो जानि लुनिए |४४|
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Hanuman Bahuk Ka Path Kaise Kare: (हनुमान बाहुक का पाठ कैसे करे)
आइये आज हम आपको बताते है हनुमान बाहुक का पाठ कैसे करना चाहिए स्नान करने के बाद भगवान श्री राम का एवं श्री हनुमान जी का मूर्ति या तस्वीर सामने रख लेना चाहिए और एक घी का दीपक जला लें तथा एक ताम्र के बर्तन में थोडा जल रख लें |
हनुमान जी का तस्वीर या मूर्ति ऐसा होना चाहिए जिसमे हनुमान जी आशीर्वाद की मुद्रा में हों |
अब सबसे पहले श्री राम जी का स्तुति करें उसके बाद हनुमान जी की स्तुति करें | अब पुरे श्रद्धा और प्रेम पूर्वक लयबद्ध हो कर धीरे-2 हनुमान बाहुक का पाठ करें |
पाठ समाप्त होने पर ताम्र के बर्तन से जल निकालकर रोग ग्रस्त हिस्से पर लगाएं तथा अपने शारीर पर उस जल का छिडकाव भी कर सकते हैं | शेष जल को अगर पौधों या गमलों में डाल देना चाहिए |
Hanuman Bahuk Ka Path Karne ke fayde: (हनुमान बाहुक का पाठ करने के फायदे)
हनुमान बाहुक का पाठ यदि सही तरीके से किया जाये तो मनुष्य का कोई भी बीमारी या स्वास्थ्य सम्बंधित समस्या हो उसमे शीघ्र सुधार हो सकता है |
ऐसा माना जाता है की यदि आपको की गंभीर बिमारी है जिसका कारण या निवारण आपको समझ में न आ रहा हो तो हनुमान बाहुक का पाठ पूरी श्रद्धा एवं लगन के साथ करने से रोग अथवा बीमारी को श्री हनुमान जी नष्ट कर देते हैं |
अतः किसी भी बीमारी से ग्रसित होने पर हनुमान बाहुक का पाठ करना अमोघ होता है | विशेष कर शारीरिक पीड़ा की स्थिति में इसका पाठ करना शीघ्र फलदायक होता है |
यदि समय कि बात कि जाए तो सुबह इसका पाठ करना बहुत अच्छा माना जाता है लेकिन यदि आपके पास समय का आभाव है तो आप संध्या के समय भी हनुमान बाहुक का पाठ कर सकते है इसका लाभ आपको जरूर मिलेगा |
FAQ:
Hanuman Bahuk me Kitne Shlok Hai ?
वैसे तो हम कह सकते हैं कि हनुमान बाहुक में ४४ श्लोक है लेकिन तुलसीदास जी ने छप्पय, धनाक्षरी, सवैया आदि का सम्मलित रूप ४४ पदों के माध्यम से प्रस्तुत किये जो हनुमान बाहुक के नाम से प्रसिद्ध है |
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